जातिवाद, भेदभाव, और पूर्वाग्रह सबसे चुभने वाले शब्द हैं जो अक्सर आप्रवासियों द्वारा सामना किए जाते हैं। भले ही दुर्भावनापूर्ण शब्द कभी-कभी पूरी तरह से अनजाने में या मजाक में कहे जाते हैं, लेकिन शायद ही कभी वे एक आप्रवासी के कान के लिए संगीत होते हैं।
मुझे स्विट्जरलैंड आये हुये पाँच साल हो गए है। मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि क्या मुझे यहां किसी भी तरह की दुर्भावनापूर्ण नस्लवादी टिप्पणी का सामना करना पड़ा है। मेरा उत्तर है: नहीं। इसका एक संभावित कारण यह है कि मुझे „एक्सपट“ के रूप में अधिक संबोधित किया जाता है। दूसरे शब्दों मे अर्थ यह है की मैं स्विट्जरलैंड में कुछ अन्य नए लोगों की तुलना में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि से आती हूं। परंतु यह कहना कि मुझे रूढ़िवादिता या पूर्वाग्रह का सामना कभी भी नहीं करना, पूर्णता सत्य नहीं होगा।
सिर्फ इसलिये की मै इंडिया से आती हूँ इसका अर्थ यह नहीं की मुझे कंप्यूटर या इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के बारे मे सब पता हो। इसी तरह मुझे बॉलीवुड डांस आता ही होगा सोचना भी एक तरह का प्रेज्यूडिस ही है। एक बार मेरे पडोसी ने मुझसे कहा की गर्मियों का 30 डिग्री तापमान भी मुझे सामान्य लगता होगा क्युकी ऐसा तापमान तो इंडिया मे हमेशा ही रहता है। „मैं इस मौसम का आदी हूं, लेकिन मैं अभी भी अंडे की तरह सूरज के नीचे पकने का आनंद नहीं लेना पसंद करती हूं,“ मैंने हंसते हुए जवाब दिया, क्योंकि मुझे पता था कि यह उसकी एक ‚निर्दोष‘ धारणा थी।
ऐसी टिप्पणियों से निपटने के लिए हास्य एक अच्छा तरीका है। परंतु सभी परिस्थियाँ एक सामान नहीं होती और सबका उपाय हास्य नहीं होता। हर व्यक्ति की अपनी एक परिस्थिति होती है, अपनी एक कहानी होती है। कुछ कहानितों का अनुभव बहुत ही कड़वा होता है।
एक प्रमुख स्विस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, जो ईरान से बहुत काम उम्र मे ही स्विट्ज़रलैंड आ गए थे, अपना ऐसा ही एक अनुभव हमारे साथ बांटा। “मैं गंभीर दृश्य हानि से पीड़ित हूं। मैं एक बार गलती से ट्रेन की पहली श्रेणी में जाकर बैठ गया था। इस दौरान एक कंडक्टर टिकट चेक करने आया, उसने मेरा द्वितीय श्रेणी का टिकट देखकर तुरंत ही जुर्माना कर दिया।… मैंने अपनी गलती समझाने की कोशिश की, लेकिन कंडक्टर ने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया। जब मैंने अपनी परेशानी में कहा कि मेरे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है, कंडक्टर ने गुस्से से उत्तर देते हुए कहा कि “अगर तुम्हें इतना कष्ट है, तो तुम छोड़कर क्यों नहीं चले जाते?” मै उसकी प्रतिक्रिया पर हतप्रभ रह गया. मैंने उससे कहा कि मै एक स्विस नागरिक हूँ। „उसने मुझ पर अपनी नागरिकता खरीदने का आरोप लगाया और मुझे वहीं बैठा छोड़ दिया”।
स्विट्जरलैंड में इन दिनों नस्लवाद के कई किस्से सामने आए हैं। देश में दो मिलियन से अधिक विदेशी हैं। यह आप्रवासियों के लिए सबसे पसंदीदा देशों में से एक है। बढ़ती नस्लवादी घटनाओं का अधिक विविधता भी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। एक संघीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट ने हाल ही में कहा कि, 60% स्विस आबादी नस्लवाद को एक महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या मानती है।
नेटवर्क ऑफ़ काउंसलिंग सेंटर फॉर विक्टिम्स ऑफ़ रेसिज्म, 2017 के एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि ज्यादातर नस्लवादी घटनाएं कार्यस्थलों या शिक्षा, प्रशिक्षण संस्थानों में हुई हैं। भेदभाव के सबसे सामान्य रूप असमान उपचार, अपमान और xenophobia हैं। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि मुसलमानों और अरब विरोधी नस्लवाद 2016 से बढ़
गया है।
पिछले साल ई टी एच विश्वविद्यालय में नस्लवाद के बारे में खबरें आई थी। विश्वविद्यालय की दीवारों और लिफ्टों पर जातिवादी भित्तिचित्र और ‘नो एशियन’ जैसे नारे चिपकाए गए थे।
ज्यूरिख के विश्वविद्यालय अस्पताल की एक पीएचडी छात्र ने कहा कि वह काम पर बहुत सारी चुनौतियों का सामना करती है, क्योंकि उसके यूरोपीय / स्विस सहयोगियों को लगता है कि „वह प्रेजेंटेशन अच्छा नहीं कर पाती क्योंकि उसका इंडियन एक्सेंट है।“
„मुझे अक्सर उच्चारण-बहाने के साथ प्रस्तुति नहीं देने के लिए कहा जाता है। मुझे लगता है कि यह बेहद पूर्वाग्रह से ग्रसित है,” उसने कहा।
कार्यस्थल में जातिवादी टिप्पणी काफी देखने को मिलती है। एक और प्रवासी महिला नौकरी के इंटरव्यू में गई। “उन्होंने मुझे एक बहुत ही कम वेतन का प्रस्ताव रखा। उनका कारण यह था कि जो कुछ भी वह मुझे दे रहे थे वह मेरी थर्ड वर्ल्ड कंट्री के वेतन के मुकाबले बहुत ज्यादा था,” उस महिला ने बताया।
हालांकि यह मान लेना अनुचित है कि हर कोई पक्षपाती या आप्रवासी विरोधी है। लेकिन इस तरह की टिप्पणियां आप्रवासी के जीवन में काफी आम हैं। आप्रवासन एक अच्छी बात है या नहीं, और क्या सरकारों को आप्रवासन का समर्थन करना चाहिए, यह ऐसे मुद्दे हैं जिनकी राजनीतिक स्तर पर चर्चा की आवश्यकता है।
हमारे लिए सवाल यह है की हम अपने बक्से में कैद विचारों पर कैसे अंकुश लगाते हैं? क्या हर श्रीलंकाई केवल रसोई में काम करता है और क्या तुर्की के सभी लोग तुर्की की दुकान में काम करते हैं, ऐसा सोचना सही है?
क्या हम प्रवासियों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं हैं?
This article speaks out the truth that even if expats or immigrants are welcomed however the mindset of local people is yet to progress. Nicely put Parul.
Absolutely true! Thank you Harpreet!
Brilliantly written article with apt examples?
Thanks Mihir